Uttarakhand major mass movement

उत्तराखंड राज्य में हुए प्रमुख जन-आन्दोलन : समय-समय पर उत्तराखंड राज्य में कई आन्दोलन (movement) हुए है। जिनमे से कुछ का मक़सद अपना अधिकार पाना था, तो कुछ का मक़सद उत्तराखंड को एक अलग राज्य का दर्जा दिलाना था। वरन कई आन्दोलन वन-संपदा को बचाने के लिए किये गए जो की आज भी हमारे लिए मिसाल हैं। जिनमे से कुछ प्रमुख जन-आन्दोलन इस प्रकार हैं – Today we share about  who started chipko movement in uttarakhand, in which year uttarakhand was established as a separate state, what is the total number of districts in uttarakhand?, uttarakhand separated from which state, why was uttarakhand separated from uttar Pradesh, uttarakhand was created from which state, what is the capital of uttarakhand

उत्तराखंड में चलाये गए जन-आन्दोलन

कुली बेगार आन्दोलन

No.-1. अंग्रेज शासन काल में, अंग्रेज अधिकारीयों को आने-जाने के लिए व सामान को ढ़ोने के लिए कुली दिए जाते थे तथा इनका  लेखा-जोखा गाँव का मुखिया रखता था, जिसे बेगार रजिस्टर कहा जाता था, यह आन्दोलन अल्मोड़ा के खाव्याडी से शुरू हुआ, और 13-14 जनवरी 1921 को बागेश्वर में सरयू नदी के किनारे उत्तरायणी मेले के दिन इस कुप्रथा का अंत किया गया। हरगोबिन्द पन्त, बद्रीदत्त पाण्डे और विक्टर मोहन जोशी आदि के नेतृत्व में कुली बेगार के रजिस्टर सरयू को समर्पित कर दिये गये, और हजारों लोगों ने कुली-बेगार न करने का संकल्प लिया। Read full article on Kuli Begar Andolan>>

टिहरी राज्य आन्दोलन

No.-1. 1939 में श्री देवसुमन, दौलतराम, नागेन्द्र सकलानी आदि के प्रयासों से प्रजामंडल की स्थापना हुई और आन्दोलन का विस्तार हुआ, मई 1944 में श्री देवसुमन अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठ गये और 25 जुलाई 1944 को 84 दिन के भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई , भारत के आज़ादी के बाद टिहरी के सकलाना में राज्य के खिलाफ विद्रोह फूट गया, और परिस्थिति को भाप-कर राजा मानवेन्द्र शाह ने 1949 को विलीनीकरण प्रपत्र पर हस्ताक्षर कर दिया और 1 अगस्त 1949 को  टिहरी संयुक्त उत्तरप्रदेश का जिला बन गया।

डोला पालकी आन्दोलन

No.-1. सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ शिल्पकारो के इस आन्दोलन का उद्येश्य सवर्ण दुल्हों के सामान स्थिति को प्राप्त करना था, इस से पहले उन्हें शादी पर डोला पालकी में बैठने का हक़ नहीं था, इस आन्दोलन के खिलाफ जयानन्द भारती के नेतृत्व में 1930 के आस-पास आन्दोलन के बाद शिल्पकारों को यह अधिकार मिला।

मैती आंदोलन

No.-1. मैती शब्द का अर्थ मायका होता है, इस अनोखे आंदोलन के जनक कल्याण सिंह रावत थे  जिनके मन में 1996 में आंदोलन का विचार आया। उन्होंने कल्पना भी न थी कि ये आंदोलन इतना विस्तार पा लेगा। ग्वालदम इंटर कॉलेज की छात्राओं को शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रम के दौरान बेदनी बुग्याल में वनों की देखभाल करते देख, श्री रावत ने यह महसूस किया कि पर्यावरण के संरक्षण में युवतियां ज्यादा बेहतर ढंग से कार्य कर सकती हैं, उसके बाद ही मैती आंदोलन संगठन और तमाम सारी बातों ने आकार लेना शुरू किया।

No.-2. इस आंदोलन के कारण आज भी विवाह समारोह के दौरान वर-वधू द्वारा पौधा रोपने कि परंपरा तथा इसके बाद मायके पक्ष के लोगों के द्वारा पौधों की देखभाल की परंपरा विकसित हो चुकी है, विवाह के निमंत्रण पत्र पर बकायदा मैती कार्यक्रम छपता है और इसमें लोग पूरी दिलचस्पी लेते हैं।

 

No.-3. 70 के दशक में बांज के पेड़ों कि अंधाधुंध कटाई के कारण हिमपुत्रियों (वहां कि महिलाओं) ने यह नारा दिया कि  ‘हीम पुत्रियों की ललकार, वन नीति बदले सरकार’, वन जागे वनवासी जागे’। रेणी गाँव के जंगलों में गूंजे ये नारे आज भी सुनाई दे रहें हैं । इस आन्दोलन की शुरुआत 1972 से वनों की अंधाधुंध एवं अवैध कटाई को रोकने के उद्देश्य से शुरू हुई । चिपको आंदोलन कि शुरुआत 1974 में चमोली ज़िले के गोपेश्वर में 23 वर्षीय विधवा गौरी देवी द्वारा की गई, चिपको आन्दोलनकरी महिलाओं द्वारा 1977 में एक नारा (“क्या हैं इस जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार”) दिया गया था, जो काफी प्रसिद्ध हुआ ।

No.-4. चिपको आंदोलन को अपने शिखर पर पहुंचाने में पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा और चंडीप्रसाद भट्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बहुगुणा जी ने “हिमालय बचाओ देश बचाओ” का नारा दिया। इस आंदोलन के लिए चमोली के चंडीप्रसाद भट्ट को 1981 में रेमन मेगसेस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

खटीमा गोली कांड

No.-1. 1 सितम्बर 1994 को उधम सिंह नगर के खटीमा में पुलिस द्वारा छात्रों तथा पूर्व सैनिकों की रैली पर गोली चलने से 25 लोगो की मृत्यु हो गई, इस घटना के दुसरे दिन मंसूरी में विरोध प्रकट करने के लिए आयोजित रैली में लोगों ने पी.ए.सी. (P.A.C) तथा पुलिस पर हमला कर दिया इस घटना से पुलिस उप-अधीक्षक उमाकांत त्रीपाठी की मौत हो गई।