Sufi kavya dhara ke  kavi aur unaki  rachnaye / सूफी काव्य धारा – कवि और उनकी रचनाएँ

सूफी काव्य धारा  : सूफी शब्द-‘सूफ’ से बना है जिसका अर्थ है ‘पवित्र’। सूफी लोग सफेद ऊन के बने चोगे पहनते थे। उनका आचरण पवित्र एवं शुद्ध होता था। इस काव्य धारा को प्रेममार्गी/प्रेमाश्रयी/प्रेमाख्यानक/रोमांसीक कथा काव्य आदि नामों से भी जाना जाता है। Today we share about सूफी काव्यधारा के कवि हैं, सूफी काव्य परंपरा के प्रथम कवि कौन है?, सूफी काव्य धारा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए, प्रमुख सूफी कवि और काव्य ग्रंथ, सूफी कवियों ने किस काव्य शैली का प्रयोग किया, प्रथम सूफी प्रेमाख्यानक काव्य के रचयिता, संत और सूफी काव्य की तुलना कीजिए, सूफी काव्य में प्रधानता है

सूफी काव्य धारा के गुण

No.-1. सूफी काव्य में उपलब्ध प्रेम भावना भारतीय प्रेम से कुछ अलग है।

No.-2. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इन रचनाओं पर फारसी मसनवी शैली का प्रभाव बताया है।

No.-3. मसनवी शैली के अन्तर्गत सर्वप्रथम ईशवंदना, हजरत मोहम्मद की स्तूति, तात्कालीन शासक की प्रशंसा तथा गुरू की महिमा का निरूपण है।

No.-4. इस प्रकार के प्रेम का चित्रण भारतीय संस्कृति में ऊर्वशी, पुरूवा आख्यान, नल-दमयन्ती आख्यान, ऊषा-अनिरूद्ध, राधा-कृष्ण आदि रूपों में मिलता है।

No.-5. सूफियों ने ईश्कमिजाजी (लौकिक प्रेम) के माध्यम से इश्क हकीकी (अलौकिक प्रेम) को प्राप्त करने पर बल दिया।

No.-6. भारत में इस मत का आगमन नवीं-दसवीं शताब्दी में हो गया था।

No.-7. लेकिन इसके प्रचार-प्रसार का श्रेय ‘ख्वाजा मोइनुद्दिन चिश्ती” को है।

No.-8. सूफी साधान में ईश्वर की कल्पना पत्नी रूप में तथा साधक की कल्पना पति रूप में की गई है।

No.-9. गणपति चन्द्रगुप्त ने सूफी काव्य को ‘रोमांटिक कथा काव्य’ कहा है।

सूफी काव्य धारा के कवि

No.-1. इस धारा के प्रतिनिधि कवि ‘जायसी’ है। इनकी प्रमुख रचना ‘पदमावत’ है । (1540 इ.) सूफी काव्य धारा के अधिंकाश कवि मुसलमान है लेकिन इनमें धार्मिक कट्टरता का अभाव है। इन कवियों ने सूफी मत के प्रचार-प्रसार के लिए हिन्दू घरों में प्रचलित प्रेम-कहानियों को अपना काव्य विषय बनाया।

No.-2. हिन्दी के प्रथम सूफी कवि ‘मुल्लादाऊद’ को माना जाता है।

No.-3. आचार्य शुक्ल ने हिन्दी का प्रथम सूफी कवि ‘कुतुबन’ को माना है।

No.-4. रामकुमार वर्मा ने मुल्लादाऊद कर ‘चन्दायन’ (लोरकहा) से सूफी काव्य की परम्परा की शुरूआत माना है।

No.-5. सूफियों में ‘राबिया’ नाम की एक कवियित्री भी हुई।

No.-6. ‘अष्टछाप’ के कवि नन्ददास ने ‘रूपमंज्जरी’ नाम से प्रेमकथा की रचना की, जिसकी भाषा ब्रज है।

सूफी काव्य की विषेषताएं

No.-1. मुसलमान कवि और मसनवी शैली

No.-2. प्रेमगाथाओं का नामकरण नायिकाओं के आधार पर

No.-3. अलौकिक प्रेम की व्यंजना

No.-4. कथा संगठन एवं कथानक रूढि़यों का काव्य में प्रयोग

No.-5. नायक-नायिका चरित्र चित्रण में एक जैसी पद्धति

No.-6. लोक पक्ष एवं हिन्दु संस्कृति का चित्रण

No.-7. श्रृंगार रस की प्रधानता

No.-8. किसी सम्प्रदाय के खण्डन-मण्डन का अभाव

No.-9. अवधी भाषा का प्रयोग तथा क्षेत्रीय बोलियाें का भी प्रभाव

No.-10. जायसी के गुरू का नाम – सैय्यद अशरफ, शेख मोहिदी

रचनाएं एवं रचनाकार

No.-1. मुल्लादाऊद – चन्दायन (लोरकहा) (1372 इ.) यह अवधी भाषा का प्रथम सम्बन्ध काव्य है, कडवक शैली का प्रयोग (पांच अर्द्धालियों के बाद एक दोहा)।

No.-2. कुतुबन – मृगावती, आचार्य शुक्ल ने इसे सूफी काव्य परम्परा का प्रथम ग्रन्थ माना है।

No.-3. मंझन – मधुमालती, इसमें नायक के एकानिष्ठ प्रेम का चित्रण किया गया है।

No.-4. जायसी – पद्मावत 1540 ई., चितौड़ के राजा रत्नसेन एवं सिंहलद्विप की राजकुमारी पद्मावती की कथा का चित्रण, यह एक रूपक काव्य है। इसके पात्र प्रतीक है – चितौड़ – शरीर का, रत्नसेन – मन का, पद्मावती – सात्विक बुद्धि, सिंहलद्विप – हृदय का, हीरामन तोता – गुरू का, राघव चेतन – शैतान का, नागमती – संसार का, अलाउद्दीन – माया रूप आसुरी शक्ति का आदि।

No.-5. जायसी की अन्य रचनांए – अखरापट – वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को लेकर सिद्धान्त निरूपण, आखरी कलम – कयामत का वर्णन, चित्र रेखा, कहरनामा, मसलनामा

No.-6. असाइत – हंसावली (राजस्थानी भाषा में) मोतीलाल मेनारिया के अनुसार।

No.-7. दामोदर कवि – लखनसेन पद्मावती कथा’ (राजस्थानी)

No.-8. ईष्वरदास – सत्यवती कथा

No.-9. नन्ददास – रूपमंजरी (ब्रजभाषा में)

No.-10. उसमान – चित्रावली

No.-11. शेखनवी – ज्ञानदीप

No.-12. कासीमषाह – हंस जवाहिर

No.-13. नुरमोहम्मद – अनुराग बांसुरी, इन्द्रावती, अनुराग बांसुरी में दोहे के स्थान पर बरवै का प्रयोग किया गया है ।

No.-14. जान कवि – कथारूप मंजरी

No.-15. पुहकर कवि – रसरतन

No.-16. आचार्य शुक्ल ने रतनसेन को आत्मा तथा पद्मावती को परमात्मा का प्रतीक माना है।

सूफी काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ

क्रमकवि(रचनाकर)काव्य (रचनाएँ)
No.-1.असाइतहंसावली
No.-2.मुल्ला दाऊदचंदायन या लोरकहा
No.-3.मंझनमधुमालती
No.-4.कुतबनमृगावती
No.-5.उसमानचित्रावती
No.-6.जायसीपद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, कन्हावत
No.-7.आलममाधवानल कामकंदला
No.-8.शेख नबीज्ञान दीपक
No.-9.पुहकररस रतन
No.-10.दामोदर कविलखमसेन पद्मावती कथा
No.-11.नंद दासरूप मंजरी
No.-12.ईश्वर दाससत्यवती कथा
No.-13.नूर मुहम्मदइंद्रावती, अनुराग बाँसुरी

भक्ति काल का इतिहास

भक्ति काल (Bhakti Kaal Hindi Sahitya – 1350 ई० – 1650 ई०) : भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता है। भक्ति काल के उदय के बारे में सबसे पहले जॉर्ज ग्रियर्सन ने मत व्यक्त किया वे इसे “ईसायत की देंन” मानते हैं। भक्तिकाल को चार भागों में विभक्ति किया गया है- 1. संत काव्य, 2. सूफी काव्य, 3. कृष्ण भक्ति काव्य, 4. राम भक्ति काव्य।