sant kavya dhara ke kavi aur unaki rachnaye  /  संत काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ

No.-1. संत काव्य’ का सामान्य अर्थ है संतों के द्वारा रचा गया, काव्य । लेकिन जब हिन्दी में ‘संत काव्य’ कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है निर्गुणोपासक ज्ञानमार्गी कवियों के द्वारा रचा गया काव्य। भारत में संतमत का प्रारम्भ 1267 ई.में “संत नामदेव” के द्वारा किया हुआ माना जाता है।

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संत कवि

No.-1. कबीर, नामदेव, रैदास, नानक, धर्मदास, रज्जब, मलूकदास, दादू, सुंदरदास, चरनदास, सहजोबाई आदि ।

No.-2. सुंदरदास को छोड़कर सभी संत कवि कामगार तबके से आते हैं; जैसे—कबीर (जुलाहा), नामदेव (दर्जी), रैदास (चमार), दादू (बुनकर), सेना (नाई), सदना (कसाई) ।

संत काव्य की धार्मिक विशेषताएँ

No.-1. निर्गुण ब्रह्म की संकल्पना

No.-2. गुरु की महत्ता

No.-3. योग व भक्ति का समन्वय

No.-4. पंचमकार

No.-5. अनुभूति की प्रामाणिकता व शास्त्र ज्ञान की अनावश्यकता

No.-6. आडम्बरवाद का विरोध

No.-7. संप्रदायवाद का विरोध

No.-8. संत काव्य की सामाजिक विशेषताएँ

No.-9. जातिवाद का विरोध

No.-10 .समानता के प्रेम पर बल

No.-11. संत काव्य की शिल्पगत विशेषताएँ

No.-12. मुक्तक काव्य-रूप

No.-13. मिश्रित भाषा

No.-14. उलटबाँसी शैली (संधा/संध्याभाषा–हर प्रसाद शास्त्री)

No.-15. पौराणिक संदर्भो व हठयोग से संबंधित मिथकीय प्रयोग

No.-16. प्रतीकों का भरपूर प्रयोग ।

संत काव्य की भाषा

No.-1. रामचन्द्र शुक्ल ने कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी भाषा’ की संज्ञा दी है।

No.-2. श्यामसुंदर दास ने कई बोलियों के मिश्रण से बनी होने के कारण कबीर की भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा है।

No.-3. बोली के ठेठ शब्दों के प्रयोग के कारण ही हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को ‘वाणी का डिक्टेटर’ कहा है।

संत काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ

क्रमकवि(रचनाकर)काव्य (रचनाएँ)
No.-1.कबीरदास (निर्गुण पंथ के प्रवर्तक)बीजक (1. रमैनी 2. सबद 3. साखी; संकलन धर्मदास)
No.-2.रैदासबानी
No.-3.नानक देवग्रंथ साहिब में संकलित (संकलन- गुरु अर्जुन देव)
No.-4.सुंदर दाससुंदर विलाप
No.-5.मलूक दासरत्न खान, ज्ञानबोध

संत काव्य के कवियों का काल

भक्ति काल (Bhakti Kaal Hindi Sahitya – 1350 ई० – 1650 ई०) : भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता है। भक्ति काल के उदय के बारे में सबसे पहले जॉर्ज ग्रियर्सन ने मत व्यक्त किया वे इसे “ईसायत की देंन” मानते हैं। भक्तिकाल को चार भागों में विभक्ति किया गया है- 1. संत काव्य, 2. सूफी काव्य, 3. कृष्ण भक्ति काव्य, 4. राम भक्ति काव्य।