लाटानुप्रास अलंकार की परिभाषा : जहाँ शब्द और वाक्यों की आवर्ती हो तथा प्रत्येक जगह पर अर्थ भी वही पर अन्वय करने पर भिन्नता आ जाये वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है। अथार्त जब एक शब्द या वाक्य खंड की आवर्ती उसी अर्थ में हो वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है। यह Alankar, शब्दालंकार के 5 भेदों में से Anupras Alankar का एक भेद हैं। Today we share about जय हनुमान ज्ञान गुण सागर में कौन सा अलंकार है, अनुप्रास अलंकार के 10 उदाहरण, अलंकार उदाहरण, अनुप्रास अलंकार की कविता, यमक अलंकार के उदाहरण, alankar, प्रेम बोली बोली में कौन सा अलंकार है नाम लिखते हुए अलंकार को
लाटानुप्रास अलंकार का उदाहरण
No.-1. तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
No.-2. तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।
Example of Latanupras Alankar
No.-1. तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
No.-2. तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।
अनुप्रास अलंकार के भेद
No.-1. छेकानुप्रास अलंकार
No.-2. वृत्यानुप्रास अलंकार
No.-3. लाटानुप्रास अलंकार
No.-4. अन्त्यानुप्रास अलंकार
No.-5. श्रुत्यानुप्रास अलंकार
No.-6. अनुप्रास अलंकार:जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है। किसी विशेष वर्ण की आवृति से वाक्य सुनने में सुंदर लगता है। इस अलंकार में किसी वर्ण या व्यंजन की एक बार या अनेक वणों या व्यंजनों की अनेक धार आवृत्ति होती है। जैसे: –
No.-1. “कानन कठिन भयंकर भारी,
No.-2. घोर घाम वारी ब्यारी।”
No.-3. जैसा की आप देख सकते हैं ऊपर दिए गए वाक्य में ‘क’, ‘भ’ आदि वर्णों की आवृति हो रही है, एवं हम जानते हैं की जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आएगा।
No.-4. जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहि विलोकत पातक भारी।
No.-5. निज दुख गिरि सम रज करि जाना, मित्रक दुख रज मेरु समाना।।
No.-6. ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते हैं यहां ‘द’ वर्ण की बार बार आवृति हो रही है , एवं हम जानते हैं की जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आएगा।